
श्री बाबा जी भगवान
कांगड़ी मैं श्री भगवान बाबा जी महाराज का जन्म 20 जनवरी 1867 इतवार के दिन 11:15 बजे रात्रि को हुआ। माता-पिता ने अपने विश्वास के अनुसार श्री बाबा जी भगवान को कांगड़ा देवी के आगे चढ़ा दिया और फिर वहां से वापस लिया इस कारण से भगवान का नाम श्रीमान देवी दास जी रखा गया। 6 महीने बाद आपके पिता का स्वर्गवास हो गया अतः माता ने आपका पालन पोषण किया। कुछ समय बाद ही महाराज के रूहानी असर उनके अध्यापकों और लड़कों पर भी पढ़ने लगे। उनको यह कहना पड़ा कि यह बच्चा कुछ खास है। आपके अध्यापक आपको अरस्तु के नाम से बुलाया करते थे। यहां तक की घर वालों के दिलों पर यह असर होने लगा कि यह कोई खास हस्ती है यह जो बात अपने मुंह से निकाल देते हैं वह हर हाल में पूरी होती है। जिस वक्त महाराज जी की उम्र 10 से 12 साल की हुई होगी तो आपकी माताजी ने तमाम दौलत महाराज जी को सुपुर्द कर दी और कहा आपको इसका पूरा हक हासिल है चाहे आप इसे खर्च करें या कुछ करें मेरा इससे कोई संबंध नहीं है और महाराज जी ने वह सारी दौलत नेक कामों में खर्च कर डाली I……….. Read More

श्री भोलानाथ जी भगवान
प्रकृति के नियमानुसार अन्धकार बढ़ते-बढ़ते जब अपनी आखिरी हद्द पर पहुँचता है तब उसी के पर्दे के भीतर से प्रकाश का आविर्भाव होता है। हम प्रतिदिन इस विधान के अनुसार अन्धकार के गर्भसे प्रकाश को जन्म लेते देखते हैं। अर्द्धरात्रि का गहनतम अन्धकार अपनी चरम परिणति पर पहुँचकर स्वर्णिम प्रभात के आगमन का पूर्वाभास देने के लिये प्रकाश की आभा बिखेरने लगता है।
(The darkest hour of the night is just before dawn)
जब विश्व में आसुरी शक्ति का अनाचार-अत्याचार, उत्पीड़न, सन्त्रास बढ़कर असह्य हो जाता है,अधर्म की प्रबलता के कारण सृष्टि का सन्तुलन बिगड़ने लगता है, तम से आच्छादित जनमानस आपसी कलह के कारण इतना अशान्त हो जाता है कि अच्छे भले लोगों का जीना और रहना मुश्किल हो जाता है, रहन-सहन की परिस्थितियाँ अत्यधिक विषम एवं कष्टप्रद हो जाती हैं तब इन्हीं परिस्थितियों के बीच किसी अलौकिक शक्ति का प्रादुर्भाव होता है जो धर्म की स्थापना करके सबको सुख शान्ति से, सद्भावपूर्ण वातावरण में रहने काअवसर देती है, अंधकार में भटकती हुई आत्माओं को जीवन जीने की एक नई दिशा देती है।………… Read More

संत ईश्वर प्रेम जी महाराज
संसार में ऐसे दो प्रकार के महापुरुषों के उदाहरण हमारे सामने आते हैं। एक वह जो यहाँ आकर महापुरुष बनते हैं । इनका पूर्व जीवन सामान्य सा होता है। दूसरे महापुरुष वह होते हैं जो बने बनाये आते हैं। यहाँ आकर नहीं बनते । यह अपने जन्म के साथ ही दिव्यज्ञान का प्रकाश लेकर अवतरित होते हैं।
ईश्वर प्रेम मिशन के मूल प्रेरणा स्रोत निष्कलंक प्रेमावतार भगवान भोलानाथ जी महाराज और उनके अत्यन्त कृपा पात्र – शिष्य – मिशन के संस्थापक परम पूज्य सन्त ईश्वर प्रेम जी – महाराज इस युग के ऐसे ही अवतारी भाव के महापुरुष हैं। इन महापुरुषों का प्रादुर्भाव विश्व की अनंत पीड़ित आत्माओं की पुकार का प्रत्युत्तर कहा जा सकता है। आज के समय की हमारी सबसे बड़ी आवश्यकता ही इन्हें हमारे बीच लेकर आयी और वह आवश्यकता है हम सबके जीवन में प्रेम, विश्वास एवं सेवा के दिव्यभावों की जागृत्ति । इसलिये ईश्वरीय प्रेम की – लोकोत्तर शक्ति के सहित इन महान् आत्माओं का आविर्भाव हुआ। यह विश्व में ईश्वर प्रेम का प्रकाश करने के लिये आये ।
तीर्थराज प्रयाग की पुण्य भूमि पर २५ सितम्बर सन् १९२५ (आश्विन कृष्ण पक्ष को द्वितीया तिथि) को एक कुलीन कान्यकुब्ज ब्राह्मण दम्पति पं० शिव बालक बाजपेयी एवं श्रीमती भगवान देवी के घर समस्त शुभलक्षणों से युक्त एक अत्यन्त सुन्दर, तेजस्वी, संस्कारी बालक का जन्म हुआ था। पिता शंकर भगवान के उपासक थे। उन्हों ने अपने इष्टदेव से एक सुन्दर, सर्वगुण सम्पन्न, धर्मवान्, शीलवान् सुपत्र की याचना की थी। ……Read More

माता कृष्णमयी जी
कीर्तन योग की सिद्ध जिनके भजन-कीर्तन एवं ऊँ सच्चिदानंद का कीर्तन सुनकर व्यक्ति आनंद के अतिरेक मे चला जाता था। आप प्रेम एवं दया की साक्षात मूर्ति रूप थी।
तप की मूर्ति माता कृष्णमयी जी कानपुर के एक प्रतिष्ठित वैद्य पं० लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी की कन्या थीं। आपका जन्म गंगा दशहरा के दिन 19 जून 1929 को हुआ। वैद्य के तीन पुत्र और थे। वैद्य जी की इकलौती पुत्री होने के नाते बड़े दुलार प्यार में पली थीं । प्रारम्भिक शिक्षा समाप्त होने के बाद कन्या का स्कूल जाना बन्द करा दिया गया था, क्योंकि उन दिनों ब्राह्मण समाज में सयानी कन्या का घर से बाहर जाना या उसे अधिक ऊँची शिक्षा देना ठीक नहीं समझा जाता था। कन्या सुन्दर, सुशील, सर्वगुण सम्पन्न थी। उसके मामा सन्यासी थे । नैतीन बाबा के नाम से जाने जाते थे। उन्होने वैद्य जी से का आपकी बेटी दिव्य है योगनी है। कालांतर में यह सत्य भी हुआ। सभी भक्त माता कृष्णमयी जी को प्यार से मम्मी जी कहा करते थे। मेरे पास एक नन्हा-सा जीवन है, जिसे में किसी को दे चुकी हूँ। इसके अतिरिक्त मैं और कुछ भी नहीं जानती। वह मुझे जैसे चाहें, रखें । ………… Read More