ईश्वर प्रेम [Divine Love]

आलमगीर मोहब्बत ही वह “विश्व धर्म” होगा जहाँ धार्मिक मत-मेद धार्मिक कटुता समाप्त होगी सबका सबसे प्यार होगा – एक धर्म दूसरे धर्म का आदर करेगा-कोई धर्मावलम्बी किसी दूसरे धर्म के मानने वाले को यह नहीं कहेगा कि वह अपना धर्म बदल दे ।

श्री महाराज जी फरमाते हैं कि विभिन्न धर्म भगवान के पास पहुँचने के विभिन्न मार्ग हैं। ये सभी धर्म श्रेष्ठ हैं। ये तो भगवान की पूजा के पुष्प हैं। इनको एक सूत्र में पिरोकर एक सुन्दर-सी माला बनानी है और उसे भगवान के गले में पहना देना है।

ईश्वर प्रेम ही वह सूत्र होगा जो विश्व के समस्त घर्म रूपी पुष्पों का एक दिव्य हार बनाकर विश्वंभर को श्रपित कर सकेगा । वे प्रसन्न होंगे । उनका विश्व प्रसन्नता से भर जायेगा

हम प्रभु से यही माँगते हैं –

हे प्रभु ! तेरा प्यार जन-जन के अन्दर जागृत हो भावनाएँ समाप्त हों अभिमान के बाँध टूटें “हृदय की लघु हृदय तेरे अनन्त प्रेम से प्लावित हो

जन जन में तेरा अनुराग जगे, तेरा प्यार बगे, तेरा प्रेम जगे । मन में तेरे प्रेम की ज्योति जगे, तन में तेरे प्रेम को ग्राम लगे ।

लघु भाव घंटे, अभिमान हटे, संचार में प्रभु तेरा प्यार जगे ।


ईश्वर प्रेम मिशन का मूल सिद्धांत


आज हमारे दार्शनिक मंच पर दो प्रकार की विचार धारायें मिलती हैं। एक अत्यन्त सूक्ष्म हैं, जो यह कहतो हैं कि ‘ब्रह्म सत्यं जगन्मिथ्या ।’ एक अद्वितीय ब्रह्म ही सत्य है, इससे भिन्न और जो कुछ दृष्टिगोचर हो रहा है, वह कुछ भी नहीं है। दूसरी अत्यन्त स्थूल हैं और घोर भौतिक-वादी हैं। वह यह कहती हैं कि ‘यावज्जीवेत् सुखं जीवेत्’ अर्थात् जब तक जिओ, सुख से जीओ । यह यथार्थवादी (Material) दर्शन यह कहता है कि सामने प्रत्यक्ष दिखाई पड़ने वाले पृथ्वी, जल, अग्नि और वायु ये चार भौतिक पदार्थ ही सत्य हैं। इन्हीं के मेल से सृष्टि की रचना हुई । इनके अतिरिक्त इनके आगे पीछे कहीं कुछ नहीं है। पहली विचार-धारा जगत की सत्यता का निषेध करने वाली, पदार्थों (Matter) के अस्तित्व को पूर्णतया अस्वीकार करनेवाली… एकांगी होने के कारण सर्वमान्य एवं बहुत व्यावहारिक न हो सकी ।

दूसरी विचारधारा केवल पदार्थों (Matter) को ही सत्य मान कर चलने वाली प्रतिक्रियावादी और एकांगी होने के कारण सर्वमान्य न हो सकी । आज आम विचारधारा जो बहुत प्रचलित है, वह यह है कि संसार और भगवान दो अलग-अलग वस्तुएँ हैं। जहाँ संसार है वहाँ भगवान नहीं और जहाँ भगवान है वहाँ संसार नहीं। इस विचार ने संसार और भगवान के बीच एक खाई (Gulf) पैदा कर दी। संसार में रहने वाले प्राणी से भगवान इतना दूर हो गया कि उसे प्राप्त करना बहुत ही कठिन समझा जाने लगा । इसमें कोई संदेह नहीं कि परमात्मा ही सब कुछ (Spirit is all in all) है । सारा खेल उस परमात्म तत्त्व का ही है। फिर भी जब वह तत्त्व अपने आप को प्रकट (Manifest) करता है तो उसे पदार्थ (Matter) का आधार चाहिये। विश्व के खेल में दोनों की आवश्यकता है। यदि पदार्थ परमात्म तत्त्व के आश्रित है तो यह सत्य है कि वह तत्त्व भी पदार्थ के आश्रित है (If matter is dependent on spirit, spirit is also dependent on matter). Read More


हमारे सिद्धांत
प्रेम, विश्वास और सेवा